वर्तमान में बंगाल में लब्ध-प्रतिष्ठित श्री पुरोहित का जन्म राजस्थान के एक छोटे से शहर बीकानेर में ई. १९८२ में हुआ। श्री पुरोहित की प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता महानगर में हुई. १९९४ में ये कलकत्ता से बीकानेर आ गए। बीकानेर के विख्यात डूंगर महाविद्यालय से इन्होने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। प्रारम्भ से ही इनकी रूचि पांडित्य कर्म में थी। मनीष जी को अपनी नानीजी स्व० कमला देवी से इस विषय में प्रेरणा प्राप्त हुई। नानाजी स्व० भगवन दास जी रंगा एवं मामाजी श्री शिवनारायण जी रंगा ने वेद पाठ एवं कर्मकांड अध्ययन में इनको मार्ग दर्शन प्रदान किया। बीकानेर में अपने ननिहाल के पास स्थित लालीमाई वेदपाठशाला में श्री पल्लव जी छंगाणी (श्रीराम) से मनीष जी ने वेदविद्या कस प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया। जब वे पाठशाला से अध्यययन करके घर आते थे, तब नानाजी उन्हें पुनः अभ्यास करवाते थे। २००१ में मनीष जी बीकानेर से कलकत्ता वापस आ गए। संघर्षमय जीवन व्यतीत करते हुए, इन्होंने ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र में विशारद आदि उपाधियाँ प्राप्त की। आज न केवलभारत में, अपितु विदेशों में भी ये अपने ज्ञान से लोगों की लाभान्वित कर रहे हैं. इसी सम्बन्ध में श्री पुरोहित बैंकाक एवं काठमांडू की यात्रा चुके हैं. काठमांडू में इनके आचार्यत्व में दो बार सहस्रचंडी का आयोजन हो चूका है। श्री पुरोहित श्रीमद्भागवत प्रवचन में भी रूचि एवं ज्ञान रखते हैं।
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